मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011

अन्‍नाग्रह के एक माह बाद


यदृच्छया/राजेंद्र तिवारी
प्रभात खबर से साभार


अन्ना हजारे का अनशन समाप्त हुए एक माह से ज्यादा बीत गया है. जो माहौल उन दो हफ्तों के दौरान पूरे देश में दिखाई दे रहा था, उससे यह लगने लगा था कि आमजन अब छोटे-छोटे कामों के लिए घूस मांगे जाने पर ठेंगा दिखाने लगेंगे.
भ्रष्ट्राचार करनेवाले नियम-कानून से चलनेवालों पर खुले आम फ़ब्तियां कसने में डरने लगेंगे. शायद देश का पॉलिटिकल क्लास इस आंदोलन से सबक लेकर थोड़ा नैतिक और जवाबदेह दिखाई देने लगे. लेकिन एक माह के बाद फ़िर वही ढाक के तीन पात. अगस्त माह में अन्ना के अनशन के दौरान मेरे एक सहकर्मी ने बताया था कि इस बार उसे नगर निगम का टैक्स जमा करने में कोई दिक्कत नहीं आयी और 50 रुपये भी नहीं देने पड़े, लेकिन आज के गांधी के अनशन से गांधी जयंती आने तक यह माहौल धीरे-धीरे खत्म हो गया.
संसद हो या सड़क, सब जगह जीवन वैसे ही चलने लगा है, जैसे कुछ हआ ही नहीं था. दूसरी तरफ़, अमेरिका में अन्ना की तर्ज पर मौजूदा गवर्नेस के खिलाफ़ माहौल बन रहा है. आर्थिक कुप्रबंधन से गुजर रहे अमेरिका में मंदी की आहट है और लोगों को लग रहा है कि राजनीतिक दल देशहित को नहीं, बल्कि पार्टीहित को साध रहे हैं और इससे देश (अमेरिका) का बंटाधार हो रहा है.
अमेरिकी कारपोरेट जगत के एक खेमे ने अमेरिकियों की इस भावनाओं को स्वर देना शुरू किया है. पिछले दिनों अमेरिकी काफ़ी चेन स्टारबक्स के सीइओ होवार्ड शुल्ज ने न्यूयार्क टाइम्स में विज्ञापन देकर कारपोरेट जगत का आह्वान किया कि जब तक देश की दोनों पालिटिकल पार्टियां (डेमोक्रैट्स व रिपब्लिकन) अपना रवैया ठीक करने का भरोसा नहीं दिलातीं, राष्ट्रपति चुनाव के लिए कोई भी उनको राजनीतिक चंदा न दे. यहां हम, आपको बताते चलें कि 2012 के राष्ट्रपति चुनाव के लिए संसाधन जुटाने की प्रक्रिया वहां शुरू हो चुकी है और राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा को कई जगह विरोध का सामना करना पड़ रहा है.
शुल्ज ने न्यूयार्क टाइम्स में दिये गये विज्ञापन में कहा है कि दोनों पार्टियों के निर्वाचित प्रतिनिधि अमेरिका को सही नेतृत्व दे पाने में विफ़ल दिखाई दे रहे हैं. ये लोग पार्टीलाइन और पार्टीहित के सामने जनहित (अमेरिकी हितों) की अनदेखी कर रहे हैं. भविष्य में सामूहिक भरोसा और अपनी दिक्कतों को सफ़लतापूर्वक हल करने की क्षमता हम अमेरिकियों की डॉलर से ज्यादा बहमूल्य पूंजी है. लेकिन इन राजनीतिक प्रतिनिधियों ने इस पूंजी को ही नष्ट करना शुरू कर दिया है.
शुल्ज ने अपने कारपोरेट साथियों का आह्वान किया है कि इस पूंजी को बचाने के लिए आइए हम राष्ट्रपति ओबामा और इन पार्टियों को तब तक चुनावी चंदा न जारी करने का संकल्प लें जब तक कि ये व्यापक अमेरिकी हित में काम करने का भरोसा नहीं दिलाते. शुल्ज का अभियान शुरुआत में तो धीमा चला, लेकिन धीरे-धीरे जोर पकड़ गया. अब 150 कारपोरेट सीइओ उनके इस अभियान से जुड़ चुके हैं.अन्ना का अभियान जहां भ्रष्टाचार के खिलाफ़ था और उसकी ताकत भारतीय मध्य व निम्न मध्य वर्ग था वहीं शुल्ज का अभियान रोजगार और बेहतर बिजनेस माहौल के लिए है और उसकी ताकत अमेरिकी कारपोरेट जगत है. मीडिया भी शुल्ज को समर्थन दे रहा है.
यदि किसी का समर्थन शुल्ज को नहीं मिल पा रहा है, तो वे हैं भारतीय या भारतीय मूल के सीइओ. खैर जो भी हो, अमेरिकियों को लगने लगा है कि ये राजनीतिक अपनी और अपनी पार्टी की नाक रखने के लिए देश का कबाड़ा कर रहे हैं. देखना यह है कि क्या शुल्ज अपने इस अभियान से अमेरिकी चुनावों पर कोई प्रभाव डाल पायेंगे या नहीं.
और अंत में
अवधी के एक कवि थे रफ़ीक शादानी. फ़ैजाबाद में सब्जी का ठेला लगाते थे. दो साल पहले उनका इंतकाल हआ. अभी यू-ट्यूब पर उनके कविता पाठ के दो वीडियो देखने को मिले. आप भी लीजिए, उनकी कविता का आनंद. दो कविताओं की चार-चार लाइनें यहां प्रस्तुत हैं-
गुस्सा आवा, बुद्धि गै
आंधी आयी, बत्ती गै
जबसे आवा ईलू-ईलूतुलसी की चौपाई गै
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तुम चाहत हौ भाई-चारा, उल्लू हौ
देखै लागेव दिन हिमतारा, उल्लू हौ
समय का समझौ यार इशारा, उल्लू हौ
तुमह मारौ हाथ करारा, उल्लू हौ

2 टिप्‍पणियां:

  1. रफीक शादानी साहब के विचार तो ठीक हैं। लेकिन अन्ना आंदोलन अमेरिकी प्रशासन और कारपोरेट घरानों के इशारों पर भारतीय कारपोरेट जगत पर पर्दा डालने का भारत विरोधी कुचक्र था। अन्ना मुहिम से भ्रष्टाचार काफी तेजी से बढ़ा है, अब अन्ना का हिस्सा भी रिश्वत मे मांगा जाने लगा है। लखनऊ नगर निगम से रु 600/- मे किसी ने अन्ना का बर्थ सर्टिफिकेट भी बनवा दिया था। अन्ना के साथ गांधी का नाम जोड़ना गांधी जी को बदनाम करना है।

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  2. आप सब को विजयदशमी पर्व शुभ एवं मंगलमय हो।

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