मंगलवार, 1 मार्च 2011

बजट में नहीं महंगाई की दवाई


राजेंद्र तिवारी
वर्ष 2011-12 के लिए सोमवार को पेश किए गए बजट प्रस्तावों का मुख्य फोकस विकास की रफ्तार बनाए रखने की है भले ही इसके लिए महंगाई का दंश जनता को क्यों न झेलना पड़े। केंद्रीय वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने अपने बजट भाषण में माना भी इन प्रस्तावों का मुख्य लक्ष्य आर्थिक विकास की रफ्तार को बनाए रखने का है। आम आदमी के सामने महंगाई की जो जबरदस्त चुनौती है, वित्तमंत्री ने बजट में इस पर अंकुश की कोशिश नहीं की है और न ही आने वाले दिनों में क्रूड आयल की बढ़ती कीमतों से निपटने का कोई खाका पेश किया है। ऊपर से खाद्य तेल जैसी 130 महत्वपूर्ण चीजों को उत्पाद शुल्क (एक्साइज ड्यूटी) के दायरे में ला दिया गया है। इसके अलावा, उत्पाद शुल्क का न्यूनतम स्तर भी 4.00 फीसदी से बढ़ाकर 5.00 फीसदी किया जा रहा है। इससे तमाम वस्तुओं की कीमतें बढ़ना तय हैं। व्यक्तिगत आयकर के लिए छूट सीमा 20000 रु. बढ़ाकर 180000 रु. की गई है। लेकिन इससे करदाता को सिर्फ 2060 रु. का फायदा होगा जो महंगाई की वजह से बढ़े घरेलू बजट के मुकाबले मामूली है। तैयार रहिए, आने वाले दिनों में तमाम चीजों के साथ डीजल-पेट्रोल भी महंगा होने वाला है। इसी तरह, वित्तमंत्री ने बात तो समावेशी विकास की है लेकिन प्रस्तावों में न तो रोजगार बढ़ाने का कोई उपकरण दिया गया है और न कोई ऐसी नई दृष्टि जिससे यह लगे कि वाकई वित्तमंत्री आर्थिक विकास के दायरे में वंचित तबके को भी लाना चाहते हैं। शेयर बाजार ने भी बजट को थोड़ी देर में समझा और जो सूचकांक करीब 500 अंक से ज्यादा चढ़ गया था, वह बाजार बंद होने तक इस स्तर को बरकरार न रख पाया।
अपने देश में मुख्यतौर पर चार तबके (कारपोरेट, मध्यवर्ग, निम्न मध्यवर्ग और वंचित) हैं और इन चारों के लिए बजट में कुछ खास नहीं है। कारपोरेट को लग रहा था कि रिटेल में विदेशी निवेश को अनुमति मिलेगी और आर्थिक खुलेपन का दायरा कुछ और बढ़ेगा। मध्यवर्ग व निम्न मध्यवर्ग कर राहत और महंगाई से राहत के उपायों की उम्मीद लगाए हुए था और वंचित तबके के लिए रोजगार या कोई नई कल्याणकारी योजनाओं की उम्मीद थी। लेकिन हर एक पर बोझ तो बढ़ रहा है लेकिन पर्याप्त राहत कहीं नहीं दी गई है।
पहले बात करते हैं राहत की। आयकर छूट सीमा 160000 रु. से बढ़ाकर 180000 रु. कर दी गई है। बुजुर्गों के लिए यह सीमा 250000 रु. कर दी गई है और एक नई श्रेणी बनाई गई है अति बुजुर्गों (80 साल से ज्यादा आयु) की जिनके लिए छूट सीमा 500000 रु. की गई है। बुजुर्गों की छूट का फायदा उठाने के लिए अब आयु सीमा घटाकर 60 वर्ष कर दी गई है। लेकिन इससे आम कर दाता को 2060 रु. का फायदा होगा लेकिन 2-2.5 लाख की सालाना आय वाले के घरेलू बजट में भी महंगाई की वजह से प्रतिमाह अमूमन 1500 से 2000 रु. का अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है और यह आने वाले दिनों में बढ़ता ही रहेगा। इस तरह कर छूट सीमा से मिली राहत ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। कारपोरेट टैक्स पर लगने वाला सरचार्ज घटाकर 5 फीसदी किया गया है तो मैट को आधा फीसदी बढ़ाकर 18.5 फीसदी पर लाने का प्रस्ताव है। इससे कारपोरेट को जरूर कुछ राहत मिलेगी।
बजट में सामाजिक क्षेत्र पर आवंटन 17 फीसदी बढ़ाकर 160887 करोड़, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए आवंटन 24 फीसदी और 20 फीसदी बढ़ाकर 52057 करोड़ रु. व 26760 करोड़ रु. करने का प्रस्ताव है। लेकिन कहीं जमीनी मुद्दों से जूझने की कवायद नहीं दिखाई देती है। डाक्टरों की कमी है, नर्सों की कमी है, शिक्षकों की कमी है लेकिन कोई योजना या दृष्टि इस बजट में इस दिशा में नहीं है।
इसी तरह हर साल की तरह इस बार भी कृषि क्षेत्र की बात की गई है। 300 करोड़ रुपए दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए, 300 करोड़ रु. आयल पाम उत्पादन के लिए और 300 करोड़ वेजीटेबल क्लस्टर के लिए रखे गए हैं। पूर्वी भारत (बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश व उड़ीसा) में चावल उत्पादन बढ़ाने के लिए 400 करोड़ रु. का प्रावधान है। लेकिन क्या यह रकम पर्याप्त है और बिना किसी दीर्घकालीन योजना के यह खर्च सार्थक परिणाम दे पाएगा। किसानों को दिए जाने वाले कर्ज के लिए लक्ष्य मौजूदा वर्ष के 375000 करोड़ रु. से बढ़ाकर 475000 करोड़ कर दिया गया है। यहां भी कोई ऐसी युक्ति नहीं दिखाई देती जो इस रकम को उत्पादन बढ़ोत्तरी में तब्दील कर सके।
अब बात महंगाई बढ़ाने वाले कारकों की बात करें जो इस बजट के प्रस्तावों से निकल कर सामने आ रहे हैं। सबसे पहले उत्पाद शुल्क। इसका आधार स्तर 10 फीसदी पर ही रखा गया है लेकिन अब उत्पाद शुल्क दायरे में न आने वाली खाद्य तेल जैसी 130 महत्वपूर्ण चीजों पर 1 फीसदी का शुल्क लगेगा और शुल्क मुक्त बाकी 240 चीजें अगले वित्त वर्ष से जीएसटी (गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स) के दायरे में आ जाएंगी। इसके अलावा न्यूनतम शुल्क भी 4 फीसदी से बढ़ाकर 5 फीसदी कर दिया गया। अब सर्विस टैक्स की बात। इसका भी अधिकतम स्तर 10 फीसदी पर बरकरार रखा गया है लेकिन छोटे होटलों के कमरे, एसी रेस्टोरेंट-बार, हवाई टिकट आदि जैसी तमाम सेवाओं को सर्विस टैक्स के दायरे में ला दिया गया है। तीसरी महत्वपूर्ण कारक है क्रूड आयल के दाम। इसको को बजट में ध्यान ही नहीं रखा गया। पिछले एक साल में सात बार पेट्रोल के दाम बढ़ चुके हैं। उम्मीद थी कि सरकार इसपर उत्पाद शुल्क कम करके आम आदमी को कुछ राहत देगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। और तो और वित्तीय घाटे के लक्ष्य का आकलन 87 डालर प्रति बैरल के आधार पर किया गया है जबकि मौजूदा कीमतें 112 डालर प्रति बैरल है। यदि इस स्तर को लें तो घाटा लक्ष्य 4.6 फीसदी के मुकाबले 6.1 फीसदी पहुंच जाएगा। चालू खाते पर घाटा भी बढ़ना तय है और इससे मुद्रास्फीति बढ़ेगी ही। यही नहीं एफडीआई (संस्थागत विदेशी निवेश) भी मुद्रास्फीति (महंगाई) के उच्च स्तर की वजह से कम हुआ है।
एक और महत्वपूर्ण घोषणा बजट में केरोसिन व रसोई गैस पर बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे) नकद सब्सिडी की है। यह मार्च 2012 से लागू होगा। लेकिन यहां यह स्पष्ट नहीं है कि बाकी लोगों (एपीएल) के लिए क्या होगा। यदि यह सब्सिडी खत्म हो जाती है तो रसोई गैस सिलेंडर का मूल्य 700 रुपए तक पहुंच जाएगा। इसके अलावा किसानों को दी जाने वाली उर्वरक सब्सिडी भी अब नकद में ही किसानों को देने का प्रस्ताव है।

वित्तमंत्री ने मुद्रास्फीति, आर्थिक सुधार व काला धन की चर्चा अपने भाषण में जरूर की लेकिन कोई खास कदम बजट में नहीं उठाया गया है।
हाउसिंग के लिए छोटी-मोटी रियायतें घोषित की गई हैं। 20 लाख की जगह अब 25 लाख रु. तक के होम लोन प्राथमिकता क्षेत्र में माने जाएंगे। 15 लाख तक के होम लोन पर एक फीसदी की रियायत मिलेगी। इससे हाउसिंग क्षेत्र को कोई खास संवेग मिलेगा, इसकी उम्मीद नहीं है।
(प्रभात खबर में प्रकाशित)