सोमवार, 13 जुलाई 2020

कोरोना: सरकार बेहतर प्रबंधन का संदेश देने में जुटी है; पर आँकड़े बताते हैं भयावहता

कोरोना: सरकार बेहतर प्रबंधन का संदेश देने में जुटी है; पर आँकड़े बताते हैं भयावहता

government claims coronavirus under control but data indicates otherwise
कोरोना भयावह होता जा रहा है। जुलाई के पहले 11 दिनों में ढाई लाख कोरोना केस देश में दर्ज किये गये हैं। लॉकडाउन के 68 दिन में कुल मिलाकर इतने कोरोना केस नहीं आए थे। केंद्र सरकार, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और आईसीएमआर शुरुआत से तमाम आँकड़ों के ज़रिये यह संदेश देने में लगी है कि भारत में कोरोना प्रबंधन बेहतरीन है और कई देश भारत का अनुसरण कर रहे हैं। डबलिंग रेट, कंपाउंडेड ग्रोथ रेट, पॉजिटिविटी रेट, मोरटैलिटी रेट आदि इंडिकेटर्स की बात की जाती रही है। आम आदमी इनपर भरोसा करके निश्चिंत हो गया। लेकिन न 21 दिन में कोरोना नियंत्रित हुआ, न मई में कोरोना पीक पर पहुँचा, न जून में कोरोना के प्रसार में कमी आनी शुरू हुई और न अब तक कोरोना का ग्राफ़ सपाट हो पाया है।
ताज़ा ख़बरें
लॉकडाउन लागू होने से पहले देश में कुल 571 कोरोना केस दर्ज किये गये थे जो 68 दिन के लॉकडाउन के बाद बढ़कर 190648 पर पहुँच गये। लॉकडाउन के आख़िरी हफ्ते में अनलॉक की प्रक्रिया शुरू कर दी गई। इससे संदेश यह गया कि सबकुछ नियंत्रण में है। लोगों में कोरोना को लेकर एक स्तर की निश्चिंतता आ गई जबकि कोरोना का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है। अनलॉक के पहले 41 दिनों में लगभग 6.4 लाख कोरोना केस दर्ज किये गये। हालत इतनी भयावह होती जा रही है कि बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु आदि राज्यों में फिर से लॉकडाउन करना पड़ रहा है। लेकिन केंद्र सरकार अब भी डबलिंग रेट, पॉजिटिविटी रेट और मॉरटैलिटी रेट का हवाला देकर बेहतरीन तसवीर पेश करने की कोशिश में जी-जान से लगी हुई है।
आइये, इन इंडिकेटरों की बात करते हैं। इन इंडिकेटरों को प्रस्तुत करते हुए हमारा स्वास्थ्य मंत्रालय बताता है कि पहले के मुक़ाबले इनमें सुधार होता जा रहा है। यह बात सही भी है। जैसे डबलिंग रेट पहले 18 दिन के मुक़ाबले 12 जुलाई को 22 दिन पर आ गया। यानी पहले जहाँ 18 दिन में कोरोना केस डबल हो जा रहे थे, अब 22 दिन में हो रहे हैं। लेकिन क्या इतने से सही निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है? पूरी दुनिया का डबलिंग रेट 40 दिन है। दुनिया में सबसे भयावह स्थिति का सामना कर रहे अमेरिका का डबलिंग रेट 49 दिन है। कोरोना केसों के मामले में दूसरे नंबर के देश ब्राज़ील का 26 दिन और चौथे नंबर के देश रूस का 46 दिन। 
भारत तीसरे नंबर पर है। इन देशों के बरक्स रखकर अगर हम अपने देश के डबलिंग रेट को देखें तो तसवीर भयावह नज़र आने लगती है।
पॉजिटिविटी रेट को लेकर भी यही स्थिति है। पॉजिटिविटी रेट यानी कुल टेस्ट में कोरोना पॉजिटिव का अनुपात। अपने देश में इस समय पॉजिटिविटी रेट 7.38 फ़ीसदी है जो अमेरिका (8.04 %), ब्राजील (39.53%), पेरू (16.97%), चिली (24.5 %), मेक्सिको (40.8%) व पाकिस्तान (15.93%) आदि देशों के मुक़ाबले बहुत अच्छा नज़र आता है। लेकिन यदि हम रूस (3.17 %), स्पेन (5.25 %), ब्रिटेन (2.50 %), इटली (4.15%), जर्मनी (3.13 %) व टर्की (5.44 %) से तुलना करें तो कुछ और नज़र आने लगेगा। लेकिन यदि हम यहाँ देखें कि क्या हमारे देश में पॉजिटिविटी रेट की दिशा क्या है, तो सबकुछ समझ में आने लगेगा। 
लॉकडाउन के 68 दिनों यानी 25 मार्च से 31 मई के बीच हमारे देश में लगभग 3837207 टेस्ट किये गये और इनमें से 5.00 फ़ीसदी पॉजिटिव निकले। अनलॉक के पहले 41 दिनों में 7749946 टेस्ट किये गये और इनमें पॉजिटिविटी दर रही 8.25 फ़ीसदी। अब तक की औसत पॉजिटिविटी दर है 7.38 फ़ीसदी। यानी कोरोना का प्रसार तेज़ होता जा रहा है।

कोरोना मृत्यु दर 

सरकार कोरोना मृत्यु दर (मोरटैलिटी रेट) को लेकर भी दावा करती है कि हमारे यहाँ यह दर काफ़ी कम है। इस समय देश में कोरोना से मौत की औसत दर है 2.68 फ़ीसदी और बताया जा रहा है कि यह दर दूसरे देशों के मुक़ाबले बहुत कम है। क्या वास्तव में ऐसा है? आइये देखें कि सबसे ज़्यादा कोरोना केस संख्या वाले देशों में यह दर कितनी है - अमेरिका में यह दर है 4.4 फ़ीसदी और ब्राज़ील में 3.9 फ़ीसदी। रूस में मृत्यु दर 1.56 फ़ीसदी, पेरू में 3.60 फ़ीसदी, चिली में 2.19 फ़ीसदी, स्पेन में 9.44 फ़ीसदी, मेक्सिको में 11.82 फ़ीसदी है। दक्षिण अफ्रीका में कोरोना मृत्यु दर सिर्फ़ 1.54 फ़ीसदी, पाकिस्तान में 2.08 फ़ीसदी, सऊदी अरबिया में 0.95 फ़ीसदी और बांग्लादेश में 1.27 फ़ीसदी है। स्पष्ट है कि रूस, चिली, दक्षिण अफ्रीका, पाकिस्तान, सऊदी अरबिया और बांग्लादेश में कोरोना मृत्यु दर हमारे देश के मुक़ाबले काफ़ी कम है।
रिकवरी रेट को लेकर भी सरकार का कहना है कि भारत में रिकवरी रेट बहुत अच्छा है। यहाँ भी अगर हम तुलनात्मक आँकड़े देखें तो ब्राज़ील और पेरू तक का रिकवरी रेट भारत से बेहतर है। भारत का रिकवरी रेट है 63.06 फ़ीसदी जबकि ब्राज़ील 65.92 फ़ीसदी व पेरू 66.36 फ़ीसदी के स्तर पर है। रूस का रिकवरी रेट 69.04 फ़ीसदी और चिली का 90.10 फ़ीसदी है।
कोरोना केसेज वाले टॉप -10 देशों में सिर्फ़ अमेरिका (44.42 फ़ीसदी), मेक्सिको (61.25 फ़ीसदी) और दक्षिण अफ्रीका (48.34 फ़ीसदी) का ही रिकवरी रेट भारत से कम है।
आईसीएमआर द्वारा गठित आपरेशंस रिसर्च ग्रुप के अध्ययन में कहा गया था कि कड़े लॉकडाउन के चलते भारत में कोरोना का पीक आठ हफ्ते आगे खिसक कर नवंबर मध्य तक पहुँचेगा। हालाँकि आईसीएमआर ने इस अध्ययन से किनारा कर लिया था और पीआईबी फैक्टचेक ने इसे मिसलीडिंग बताया था। पिछले दिनों एमआईटी के शोधकर्ताओं का एक अध्ययन जारी हुआ। इस अध्ययन में 84 देशों का कोरोना आँकड़ा शामिल किया गया। 
विश्लेषण से ख़ास

इस शोध के मुताबिक़, फ़रवरी 2021 तक भारत दुनिया में कोरोना से सबसे ज़्यादा प्रभावित देश होगा और रोज़ाना 2.87 लाख कोरोना केस आने लगेंगे। दूसरे स्थान पर अमेरिका होगा जहाँ रोज़ाना 90000 केस आ रहे होंगे। 
अभी भारत की आबादी के अनुपात में टेस्टिंग (0.83 फ़ीसदी) बहुत कम है जबकि अमेरिका में यह अनुपात 12.62 फ़ीसदी, ब्राज़ील में 2.15 फ़ीसदी और रूस में 15.56 फ़ीसदी है। यदि टेस्टिंग का स्तर ब्राज़ील के बराबर हो जाए तो मौजूदा पॉजिटिविटी दर से भारत में 21 लाख 90 हज़ार 252 कोरोना केस पहुँच जाएँगे।
(मूल आँकड़े worldometers.info, covid19india.org और स्वास्थ्य मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्तियों से लिये गये हैं और 12 जुलाई सुबह 8.00 बजे तक के हैं)

शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

कोरोना, चीन व विकास दुबे : अखबारों की मोतियाबिंदी नजर

कोरोना, चीन व विकास दुबे : अखबारों की मोतियाबिंदी नजर

राजेंद्र तिवारी
कोरोना भयावह होता जा रहा है, चीन सीमा पर पीछे हटने पर सहमति और विकास दुबे प्रकरण पूरे हफ्ते चर्चा का विषय रहा. सभी अखबारों ने इस पर खूब रोचक सामग्री पाठकों को परोसी. हिंदी अखबार तो बहुत आगे रहे. अलबत्ता, जरूरी सवाल नदारद ही रहे. 
कोरोना को लेकर दो भ्रम फैलाए जा रहे हैं. पहला यह कि कोरोना से निपटने के मामले में हमारा देश अव्वल है. हमारे यहां पाजिटिविटी रेट बहुत कम है, रिकवरी रेट अधिकतम है और मृत्युदर ज्यादा केसेज वाले तमाम देशों से कम है. दूसरी बात यह है कि कोरोना की वैक्सीन बस बनकर बाहर निकलने ही वाली है जैसा आईसीएमआर के निर्देश पत्र से पता चला था. सारे अखबारों ने उसे खूब बड़ा-बड़ा छापा. लेकिन एक-दो अखबारों को छोड़कर, बाकी किसी ने इस खबर पर सवाल नहीं खड़े किये. सवाल खड़े करने वालों को भी प्रमुखता से नहीं छापा. आखिर क्या वजह हो सकती है इसकी? हमारे अखबार और खासतौर पर हिंदी के, अपने जर्नलिज्म को समृद्ध करने में कम संसाधन लगाते हैं बनिस्बत विज्ञापन जुटाने की. संपादकीय विभाग में विशेषज्ञता अब गये जमाने की बात हो गई है. और, बात विज्ञान करें तो अज्ञानता के केंद्र ही निकलेंगे न्यूजरूम्स. ऐसे में चिकित्सा विज्ञान के अनुसंधानों व औषधि-टीका विकसित करने की प्रक्रिया की जानकारी की जानकारी की अपेक्षा कैसे रखी जा सकती है? इसी तरह, कोरोना को लेकर जिस तरह की तस्वीर  स्वास्थ्य मंत्रालय प्रस्तुत करता चला आ रहा है, साढ़े चार महीने के बाद भी उस पर सवाल नहीं उठाये जा रहे हैं जबकि मार्च से लेकर अब तक के उनके दावों की पोल आंकड़ों में खुलती जा रही है.
चीन सीमा की बात करें, क्या हुआ वहां, क्या हो रहा है वहां और क्या होगा वहां…इन तीनों बातों को लेकर तमाम भ्रामक बातें तथ्य और सत्य के तौर पर लोगों के बीच फैली हुई हैं लेकिन हमारे यहां का स्वतंत्र-स्वायत्त मीडिया चीन के सरकार-पार्टी नियंत्रित मीडिया से प्रोपेगैंडा में आगे निकलने की होड़ करता प्रतीत हो रहा है. टेलीग्राफ व इंडियन एक्सप्रेस जैसे अखबार सवाल उठाती हुई खबरें देते भी है लेकिन बाकी तो सरकारों बयानों से फैले भ्रम के संवाहक का ही काम रहे हैं. इन अखबारों को पढ़कर क्या कोई यह जान सकता है कि पेट्रोलिंग प्वाइंट 14, 15 व 17 आपस में कितनी दूरी पर हैं और इनका मतलब क्या होता है? चीन के साथ रविवार को बनी सहमति में दबाव किस पर दिखाई दे रहा है? अपने हिंदी अखबार पढ़ें तो लगेगा जैसे चीन भारत से डर गया. लेकिन यदि चीन के सरकारी मीडिया के जरिये वहां की सरकार के प्रोपेगैंडा को देखें तो तस्वीर उलटी नजर आएगी. मजेदार बात तो यह हिंदी के बड़े अखबार अमर उजाला ने शुक्रवार को अंदर के पेज पर चीनी अखबार साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की छपी खबर को फैलाकर लगाया है - जैसा अखबार अपने पाठकों के सामने हर्षोल्लास में कह रहा हो - हा हा हा…देखो चीन का अखबार भी मान रहा कि चीन भारत के दबाव में आ गया. इसको क्या कहा जाए- जानबूझकर कुछ लोगों को खुश करने का उपक्रम या न्यूजरूम की विपन्नता!
गुरुवार को विकास दुबे के उज्जैन में पकड़ाये जाने की खबर को ही लें. टाइम्स ऑफ इंडिया ने जरूर अप्रत्यक्ष रूप से जरूर कुछ सवाल खड़े करने की कोशिश की है. आश्चर्य तो इस बात का है कि कानपुर व लखनऊ में बड़े अखबारों ने विकास दुबे को लेकर तमाम तरह की कहानियां छापीं और इस तरह से कि भरपूर मनोरंजन पाठकों का हो. लेकिन जमीन से लाई गई कोई ऐसी स्टोरी नहीं दिखाई दी जिससे अपने देश और खासतौर पर हिंदी प्रदेशों की राजनीति की “विकास दुबे” प्रवृत्ति पर दृष्टि मिल सके. वैसे राजनीति के अपराधीकरण पर बड़े-बड़े लेख-आलेख-टिप्पणियां मीडिया में दिखती हैं लेकिन जब कोई ऐसी घटना होती जिससे इस प्रवृत्ति को सींग से पकड़ा जा सके, हमारा मीडिया चूक जाता है. ऐसा नहीं है कि जमीन पर इसकी जानकारी हमारे पत्रकारों को नहीं है, लेकिन उस जानकारी को छापने का काम तो दूसरे लोगों के हाथ में है.
एक और बहुत ही महत्वपूर्ण खबर है कि नेपाल ने भारतीय न्यूज चैनलों को प्रतिबंधित कर दिया. ऐसा करने वाला वह पाकिस्तान के बाद दूसरा देश है. इस खबर को बहुत ही सामान्य तरीके से ट्रीट किया गया है। वास्तव में यह खबर सामान्य नहीं है. हिंदुस्तान समेत लगभग सभी अखबारों ने इसे ब्रीफ में निपटा दिया है. अंगरेजी में जरूर कुछ जगह इस खबर को महत्ता दी गई है.
यदि बीते सात दिनों पर नजर डालें तो राष्ट्रीय महत्व की इन प्रमुख खबरों के मामले में अधिकतर अखबार ‘मोतियाबिंदी’ ही नजर आ रहे हैं.
टाइम्स ऑफ इंडिया में शुक्रवार को छपी एक रिपोर्ट से हमारे यहां के सूचना माहौल के संकेत मिलते हैं. यह रिपोर्ट अमेरिका एमआईटी के दो रिसर्चरों की एक स्टडी से संबंधित है. हमारे यहां के सोशल मीडिया और खासतौर पर व्हाट्सएप ग्रुप्स के जरिये फैलाई जा रही सूचनाओं पर. इसके मुताबिक, व्हाट्स एप पर हर आठ में एक फोटो भ्रामक होती है. एमआईटी के इन रिसर्चरों ने अक्टूबर 2018 में भारत में व्हाट्सएप पर चल रहे 5000 ग्रुप्स की सदस्यता ली और जून 2019 तक ढाई लाख से ज्यादा यूजर्स की 50 लाख पोस्ट्स एकत्र कीं. फिर उनका विश्लेषण किया.

विकास दुबे को मारकर बचाया किनको गया? | Unbreaking Live

विकास दुबे के पुलिस हिरासत में आने के बाद से ही यह कहा जाने लगा था कि विकास दुबे जिंदा कानपुर न पहुंचेगा। पुलिस बताएगी कि रास्ते में विकास दुबे भागने की कोशिश की और उसी में मारा गया। यही हुआ। खैर, विकास दुबे तो मार दिया गया लेकिन अब बड़ा सवाल है कि बचाया किनको गया? 1AlokJoshi पर इन सवालों पर वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता, आशुतोष, शीतल सिंह और हर्षवर्धन त्रिपाठी से चर्चा... पूरा वीडियो देखिए...बहुत सारी जानकारियां मिलेंगी यहां....




रविवार, 5 जुलाई 2020

किस्सा किताबों का : बात मशहूर किस्सागो हिमांशु बाजपेयी उर्फ लखनउवा से उन...



लखनऊ की शान, मशहूर दास्तानगो हिमांशु बाजपेयी उर्फ लखनउवा से बात। उनकी किताब क़िस्सा क़िस्सा लखनउवा पर बातचीत में हमारे साथ एक और ख़ास मेहमान हैं । महमूद मेहंदी आब्दी जिनके पास खुद लखनऊ के किस्सों का एक खजाना है। बात कर रहे हैं आलोक जोशी @1Alokjoshi ।

शनिवार, 4 जुलाई 2020

राष्द्रपति भवन के कार्यक्रम में दलाई लामा का भाषण नहीं हुआ


कैसे भारत चीन के खिलाफ अपने लीवरों को एक-एक कर खत्म करता जा रहा है….इसके चलते चीन से निपटने के जो विकल्प बचे हैं, उनमें अपने देश का भी नुकसान है। इसी पर बात……Unbreaking Live पर वरिष्ठ पत्रकार आलोक जोशी और वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ के साथ राजेंद्र तिवारी की चर्चा..

निमू में मोदी, चीन का अखबार और फोटो ऑप के लिए सेट


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निमू दौरे को अपने देश के सभी अखबारों को तो प्रमुखता से प्रकाशित ही करना था लेकिन चीन के अखबार साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने बहुत बड़ा फोटो पहले पेज पर प्रकाशित किया। अपने यहां के किसी प्रमुख अखबार ने पहले पेज पर इतना बड़ा फोटो नहीं छापा है। साथ में इसकी खबर भी फैला कर लगाई है। आखिर इसकी क्या वजह हो सकती है? इसके अलावा, द वाल स्ट्रीट जर्नल के संपादक रहे राजू नारिसेत्ती ने भाजपा द्वारा ट्वीट की गई मोदी के निमू दौरे की एक तस्वीर को लेकर सवाल खड़ा किया है कि पूरी सेटिंग फोटो खिंचवाने के लिए की गई है।

यह समझने के लिए पहले निमू की भौगोलिक स्थिति व भू-सामरिक स्थिति जानना जरूरी है - निमू कहां स्थित है, यहां से भारत व चीन के बीच की वास्तविक नियंत्रण रेखा कितनी दूर है और हमारे देश के गृहमंत्री, सत्तारूढ़ दल भाजपा और इसके प्रवक्ताओं ने इसे कहां पर स्थित बताया? 

निमू लेह से ३५ किमी दक्षिण-पश्चिम में झंस्कार रेंज के नीचे है। झंस्कार रेंज जम्मू-कश्मीर व लद्दाख के बीच में पड़ती है। निमू से गलवान घाटी उत्तर में २५० किमी की दूरी पर है। यहां से पैंगांग लेक २५३ किमी, चुसुल २३१ व डीबीओ (दौलत बेग ओल्डी) ३१० किमी दूर है।यह सिंधु नदी के तट पर स्थित एक टूरिस्ट प्लेस है और रिवर रैफ्टिंग के लिए बेस कैंप है।लेह से बमुश्किल ४० मिनट लगते हैं इस जगह पर पहुंचने में।

देश के गृहमंत्री अमित शाह ने ट्विट कर कहा था कि मोदी जी फारवर्ड पोस्ट पर हैं - Leading from the front.Prime Minister Shri @NarendraModi Ji with our brave and courageous personnel of Army, Air Force & ITBP at a forward location in Ladakh.This visit of honourable PM will surely boost the morale of our valorous soldiers. #ModiInLeh 

सत्तारूढ़ भाजपा ने ट्विट किया -  PM @narendramodi visited one of the forward locations in Nimu in Ladakh early morning today. Located at 11K feet, this is among the tough terrains, surrounded by the Zanskar range and on the banks of the Indus. He interacted with personnel of the Army, Air Force and ITBP.



फारवर्ड पोस्ट उस फौजी पोस्ट को कहते हैं जो दुश्मन फौज की रेंज में हो और सीमा या नियंत्रण रेखा से ४० किमी के दायरे में स्थिति हो। लेकिन हमारे गृहमंत्री व सत्तारूढ़ दल भाजपा ने निमू को ट्विटर पर फारवर्ड पोस्ट बताकर संदेश देने की कोशिश की कि प्रधानमंत्री वास्तविक नियंत्रण रेखा के आसपास स्थित पोस्ट पर पहुंचे हैं। 

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने अपनी खबर में लिखा है - प्रधानमंत्री मोदी जिस जगह पर गये, वह पाकिस्तान के दावे वाले क्षेत्र में है। चीन का उस क्षेत्र से कोई लेना-देना नहीं है। यदि वे अक्साई चिन से सटे गलवान क्षेत्र में आते तो अलग बात होती। गलवान से निमू २५० किमी दूर है। प्रधानमंत्री मोदी अपने देश में भयावह रूप धारण कर रही कोरोना महामारी से निपटने में अपनी विफलता से लोगों का ध्यान हटाना चाहते हैं। गलवान घाटी प्रकरण के बाद वे अपने देश की जनता को संदेश देना चाहते हैं कि भारत हर तरह से मुकाबले को तैयार है। इसके अलावा, उनका उद्देश्य अपनी सेना में उत्साह का संचार करना है। भारत के नेताओं द्वारा अपनी जनता को संदेश देने के लिए सीमा का दौरा किया जाना आम बात है। इस खबर में शुक्रवार को चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजिआन द्वारा जारी बयान को भी दिया गया है - नई दिल्ली रणनीतिक मिसकैलकुलेशन न करे और पूरी स्थिति पर नियंत्रण के लिए चीन के साथ मिल कर काम करे। 
इससे पहले, १९ जून को “न कोई घुसा, न घुसा हुआ है….” वाले प्रधानमंत्री के बयान की क्लिप को भी चीन ने गलवान घाटी पर अपने दावे के पक्ष में इस्तेमाल करता आ रहा है। अब उसने यह बताते हुए कि निमू गलवान से बहुत दूर है, गृहमंत्री व भाजपा के ट्विट की व्याख्या कर दी कि वे अपनी जनता को संदेश देना चाहते हैं। 

लेह में घायल जवानों के साथ पीएम के फोटो पर सवाल!



वरिष्ठ पत्रकार राजू नारिसेत्ती ने भाजपा द्वारा ट्वीट किये गये एक वीडियो पर सवाल खड़े किये हैं। इस वीडियो में प्रधानमंत्री मोदी गलवान घाटी में १५ जून को घायल हुए जवानों से हॉस्पिटल वार्ड में बात कर रहे हैं। नारिसेत्ती इसे रिट्वीट करते हुए कमेंट किया - This photo opp is fascinating. Not one Indian soldier seems to have external injuries needing any bandages...they are all able to sit straight up (no internal injuries?), the pristine hospital ward with beds that look un-slept on...zero medical equipment. What is going on here?
क्या फोटो ऑप है! भारतीय सैनिकों में एक भी घायल दिख नहीं रहा कि उसे पट्टी बांधने की जरूरत हो…सब चुस्ती से बैठे हैं (किसी को कोई अंदरूनी चोट भी नहीं?),  बिना उपयोग में लाये हुए बेड्स वाला पुराना हॉस्पिटल वार्ड… कोई मेडिकल इक्विपमेंट भी नहीं. यह हो क्या रहा है?
इसके बाद तो सोशल मीडिया और खासकर ट्विटर पर और भी बाते सामने आने लगीं। 
लोगों ने पिछले साल अगस्त का एक फोटो रिट्वीट किया जिसमें महेंद्र सिंह धोनी लेह स्थित आर्मी हॉस्पिटल के कांफ्रेंस हाल में  जवानों से बातचीत करते हुए दिखाई दे रहे हैं। इस फोटो को लगाकर दावा किया जा रहा है कि धोनी और प्रधानमंत्री मोदी जहां खड़े हैं, वह एक ही हाल है। दावा किया जा रहा है कि पूरा सेट तैयार किया गया प्रधानमंत्री के लिए जहां वे घायल जवानों के साथ बात करते हुए दिखाई दे सकें।

शुक्रवार, 3 जुलाई 2020

“एंटी नेशनल न्यूज एजेंसी PTI”

क्या भ्रामक बयानों से जमीनी हकीकत बदल जाएगी? | Unbreaking Live

Kashmir : दर्द की घाटी और क्रूर राजनीति

BiharElection : क्या मुसलिम ओवैसी के साथ जाएगा? | UnBreaking Live with R...

पत्रकारिता ने सवाल पूछने बंद कर दिये!

राजेंद्र तिवारी
दो दिन पहले कश्मीर के सोपोर से फोटो लगभग सभी अखबारों ने पहले पेज पर छापा. दो फोटो सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता डॉ. संबित पात्रा ने राजनीतिक निशानेबाजी के साथ ट्वीट किये. फोटो था मृत नाना के पेट पर बैठे तीन साल के आयद का. फोटो सोपोर के मॉडल टाउन चौक का था, जहां आतंकवादियों ने सीआरपीएफ के जवानों पर फायरिंग की और सीआरपीएफ का कहना है कि इसी फायरिंग में आयद के नाना बशीर अहमद खान मारे गये. डॉ संबित पात्रा ने इस फोटो को प्रश्न चिन्ह के साथ पुलित्जर लवर्स लिख कर ट्वीट किया.
अब सवाल यह है कि हमारे मेनस्ट्रीम मीडिया और खासकर अखबारों ने इन फोटो और ट्वीट को कैसे ट्रीट किया? 

अधिकतर अखबारों ने अपने मृत नाना के पेट बैठे आयद या फिर उसी सीक्वेंस का दूसरा फोटो छापा है, जिसमें आयद पास में पोजीशन लिये जवान की ओर बढ़ता दिखायी दे रहा है और जवान उसे रोक रहा है. फोटो को लगभग हर किसी ने आतंकवाद के घिनौने चेहरे से जोड़ा है. क्या ये फोटो इतने भर ही थे? क्या ये फोटो कश्मीर के दर्द के फोटो नहीं थे? फिर, किसी ने फोटो को कश्मीरी लोगों की जिंदगी के साथ क्यों नहीं जोड़ा? दूसरी बात, फोटो परिचय में दी गई स्टोरी में भी दोनो पक्ष नहीं हैं. और तीसरी बात, यह सवाल किसी ने नहीं उठाया कि क्या किसी ने आयद को अपने नाना के मृत शरीर पर बैठाया या तीन साल का बच्चा खुद फायरिंग की आवाजों के बीच जाकर बैठ गया. एक फोटो जो कई अखबारों ने छापी है, वह इस संशय को बढ़ाने वाली ही है. यह फोटो है लाश के पास में पोजीशन लिये जवान की जो इस बच्चे को अपने पास आने से रोक रहा है. पेट पर बैठे आयद की फोटो के फ्रेम में वह जवान नहीं दिखायी देता है.
पुलित्जर लवर्स वाले ट्वीट पर भी टेलीग्राफ को छोड़कर बाकी अखबारों ने कोई ध्यान नहीं दिया. यह एक महत्वपूर्ण इश्यू था कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सत्तारूढ़ व सबसे बड़ी पार्टी का महत्वपूर्ण प्रवक्ता इस फोटो में छिपी त्रासदी को लेकर इतना क्रूर और निष्ठुर भी हो सकता है? यदि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सबसे बड़ी पार्टी का प्रवक्ता अपने नागरिकों को लेकर इतनी क्रूरता का सार्वजनिक प्रदर्शन कर रहा हो तो इसे देश-समाज के लिए कैसा संकेत माना जाना चाहिए?
पूरी खबर सबको पता है, इसलिए मूल खबर पर नहीं जाते हैं। शुक्रवार को इस घटना का फॉलोअप आया है कोलकाता के अखबार टेलीग्राफ में. श्रीनगर से मुजफ्फर रैना की रिपोर्ट है।  रिपोर्ट में बताया गया है कि सोपोर में मारे गये बशीर अहमद खान की पत्नी फारुका खान पुलिस अधिकारी थीं और 2017 में रिटायर हुईं. फारुका खान की बहन कौशर जहां भी पुलिस इंस्पेक्टर हैं. बशीर का छोटा बेटा सुहैल जामिया में पीजी कर रहा है. इस रिपोर्ट में आयद के वीडियो की चर्चा की गई है। इस वीडियो में आयद से एक आवाज पूछ रही है - बड़े पापा थे ना सुबह आप के साथ?  उनको क्या किया? आयद जवाब देता है - गोली. वह कहता है कि वो मर गिया था. किसने मारा, के जवाब में वह कहता है - पुलिसवाले ने ठक-ठक किया.
बशीर को गोली सामने से सीने पर लगी और पीठ से पार हो गई. जबकि सीआरपीएफ के अतिरिक्त महानिदेशक जुल्फिकार हसन का कहना है कि बशीर जब कार से बच्चे को बाहर निकाल रहे थे, उसी समय आतंकवादी की गोली उनकी पीठ में लगी. हम सब घटनास्थल पर गये थे और वहां जितने एंगल हो सकते थे, उन सब एंगल से देखा. तकनीकी रूप से हमें स्पष्ट है कि बशीर की मौत आतंकवादी की गोली से हुई है.
अगर कोई पूरी स्टोरी पढ़ेगा और सोशल मीडिया पर चले फोटो व वीडियो देखेगा तो उसके दिमाग में भी कई सवाल खड़े होंगे? अखबारों में इन बातों की कोई चर्चा न होना क्या साबित करता है? क्या पत्रकारिता ने वाकई सवाल पूछने बंद कर दिये हैं?

बुधवार, 24 जून 2020

CVOTER का सर्वे


Rajendra Tiwari
सी वोटर का नया ओपिनियन पोल आया है। उसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में ७३ फीसदी लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भरोसा करते हैं। सोशल मीडिया पर इसे तो खूब दौड़ाया जा रहा है। लेकिन साथ ही ६०. फीसदी का मानना है कि भारत सरकार ने चीन को यथोचित जवाब देने के लिए जरूरी कदम नहीं उठाए हैं, इसकी चर्चा ही नहीं की जा रही है। इस सर्वे में ६८. फीसदी ने कहा है कि पाकिस्तान की तुलना में चीन भारत के लिए ज्यादा बड़ी समस्या है। अब इन तीनों जवाबों को एक साथ रखकर देखिए तो तस्वीर सत्तारूढ़ दल के लिए उतनी माफिक नहीं दिखाई देती जितनी बताई जा रही है।
कुछ सवाल देखने में तो सटीक लग रहे हैं लेकिन यदि उनके साथ कुछ और सवाल पूछे जाते तो स्पष्ट तस्वीर सामने पाती। जैसे - राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में प्रधानमंत्री मोदी पर आप कितना भरोसा करते है। अब इस सवाल के साथ यह सवाल भी होना चाहिए था कि क्या आप मानते हैं कि चीन ने एलएसी पर गलवान घाटी पैंगांग के हमारे क्षेत्र में अतिक्रमण नहीं कर रखा है?  एक अन्य सवाल है - क्या चीन के विरोध में आम जनता क्या चीनी सामान खरीदना बंद कर देगी? इसके साथ यह भी पूछा जाना चाहिए था कि चीनी सामान किसे मानते हैं - चीन में बने सामान या चीनी कंपनियों के सामान।
एक सवाल पूछा गया है कि चीन के चल रहे मौजूदा विवाद पर भारत सरकार पर ज्यादा भरोसा करते हैं या विपक्षी दलों पर? इस सवाल पर ही सवाल उठता है कि वास्तविक स्थिति की जानकारी देने की जिम्मेदारी किसकी है - क्या सही जानकारी देने की जिम्मेदारी विपक्ष पर आयद हो भी सकती है? सवाल यह पूछा जाना चाहिए था कि क्या हमारी सरकार चीन विवाद में जनता को सही जानकारी दे रही है? 
इसके अलावा ये सवाल भी पूछे जाने चाहिए थे -
- क्या १५ जून की रात की घटना की सिलसिलेवार जानकारी आधिकारिक तौर पर दी जानी चाहिए थी? 
- क्या आप मानते हैं कि गलवान घाटी में चीन के ४५ सैनिक मारे गये?