सोमवार, 27 सितंबर 2010

शायद तुम भी

बिखरा नहीं
कुछ बंधा नहीं
समय ठहरा था
लेकिन पृथ्वी नहीं
और मैं गुजर रहा था तुम्हारे साथ शाम के बसेरे से
और शायद तुम भी

ठहराव के पल
जिंदगी जितने खूबसूरत
उमस का मौसम
बारिशों सा हसीन
और मैं गुजर रहा था तुम्हारे साथ शाम के बसेरे से
और शायद तुम भी

स्पर्श का रोमांच
ध्वनि जैसा स्पंदित
स्पर्श का रोमांच
आकाश जितना अंतहीन
और मैं गुजर रहा था तुम्हारे साथ शाम के बसेरे से
और शायद तुम भी

शनिवार, 25 सितंबर 2010

तुम चलोगे तो ये सब खुश हो जाएंगे

आओ तुम्हे अपने गांव ले चलूं
वह गांव जो मेरे अंदर धड़कता रहता है
वह गांव जो हर जगह मेरे साथ रहता है

गांव के पश्चिम परभू वाला खेत
गांव के दक्षिण हमारा बड़हर वाला खेत
गांव के पूरब बरमबाबा
गांव के उत्तर हमारा गांवतरे वाला खेत
आओ तुम्हे अपने गांव ले चलूं

देशराज जिसके साथ मैं बारह से सोलह साल का हुआ
रेखिया जो हमारे घर के सामने रहती थी
पुष्पा ब्याह कर कहीं और चली गई
रम्मी मियां, जीवनलाल, मिसरा
आओ तुम्हे अपने गांव ले चलूं

सुकई धोबी की दुलहिन और बहुतों की भौजाई
घसीटे उपपरधान और कढ़िले
सुंदर आरट बनाने वाले रोशन दादा
और बालकराम
आओ तुम्हे अपने गांव ले चलूं

जंगल के किनारे बहती सुहेली
सैकड़ों साल पुराना किला
और किले पर होली के बाद लगने वाला मेला
कालीदेवी और वहां भौंरिया लगाना
आओ तुम्हे अपने गांव ले चलूं

मीठी जमुनी का बिरवा
हमारे घर में लगे शहतूत
नीम के नीचे की मठिया
और मठिया के लिए लड़ने वाली मझिलो दाई
आओ तुम्हे अपने गांव ले चलूं

तुम चलोगे तो ये सब खुश हो जाएंगे
आओ तुम्हे अपने गांव ले चलूं