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रविवार, 11 सितंबर 2011

ये पालिटिकल क्लास तो रोज देश की अवमानना करता है


इस रविवार से प्रभात खबर में यदृच्छया स्तंभ शुरू किया है. यह आलेख आज के अंक से हैं...

हमारे नये कालम यदृच्छया (रैंडम) के तहत प्रभात खबर के कारपोरेट संपादक राजेंद्र तिवारी की कलम से देश-दुनिया-समाज-जीवन से जुड़ी घटनाओं, मुद्दों और प्रवत्तियों आदि पर मिलेगी विचारोत्तेजक सामग्री हर रविवार...


पिछले दिनों दो घटनाएं हुईं जो हमसे जवाब मांगती हैं और इस सवाल का जवाब भी देती हैं कि हम भारत के लोग आजादी के 64 साल बाद भी उस भारत का निर्माण नहीं कर पाए जिसका सपना हमने अपने संविधान में देखा। हमारे संविधान की उद्देशिका में कहा गया है-
हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न समाजवादी पंथ निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को :
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समता
प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की
एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता
बढ़ाने के लिए
दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26-11-1950 ई. (मिति मार्गशीष शुक्ल सप्तमी, संवत 2006 विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं

जिन दो घटनाओं का जिक्र मैं कर रहा हूं, उसमें से दूसरी है अन्ना के सहयोगियों प्रशांत भूषण, अरविंद केजरीवाल और किरन बेदी के खिलाफ संसद के सदनों से विशेषाधिकार हनन के नोटिस जारी होना होना। और पहली घटना है, राजीव गांधी की हत्या को दोषी की फांसी की सजा माफ करने के लिए तमिलनाडु विधानसभा में प्रस्ताव पारित होना और जम्मू-कश्मीर विधानसभा में संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरू की फांसी की सजा माफ करने के लिए एक विधायक द्वारा प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाना। संविधान की उद्देशिका की दिशा में हम भारत के लोगों को आगे ले जाने का काम करने की जिम्मेदारी सबसे ज्यादा विधायिका यानी संसद व राज्य विधानमंडलों की है। संसद ने अन्ना सत्याग्रह के जिन लोगों के खिलाफ विशेषाधिकार हनन की नोटिस जारी की है, उन्होंने क्या बयान दिए थे? क्या यह सही नहीं है कि 150 से ज्यादा लोकसभा सदस्य आपराधिक मामलों के आरोपी हैं? क्या यह सही नहीं है कि इनमें भी 72 पर लगे आरोप बहुत ही गंभीर किस्म के हैं? क्या यह सही नहीं है कि विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाने वालों में से प्रवीण कुमार एरन, कौशलकिशोर और जगदंबिका पाल पर तो गंभीर मामले चल ही रहे हैं, इनमें से एक डा. विनय कुमार पांडेय पर हत्या का प्रयास, दंगा करने, सरकारी कर्मी को उसके कर्तब्य पालन से रोकने के मामले चल रहे हैं। इस समय आधा दर्जन सांसद और कई विधायक जेल में हैं। झारखंड में देखें तो कई विधायक और मंत्री अफसरों को पीटते और भद्दी-भद्दी गालियां देते नजर आते रहते हैं। अभी कुछ दिन पहले ही झारखंड के एक मंत्री की गाड़ी को साइड न देने पर बस ड्राइवर का हाथ तोड़ दिया गया। बिहार में स्थिति सुधरी है लेकिन पहले वहां तो यह सब आम था। जूता-चप्पल-कुर्सियां-माइक चलाते और आपस में भद्दी गालियां देने का नजारा अकसर किसी न किसी विधानसभा में देखने को मिल जाता है। क्या यह स्थिति विधायिका और हम भारत के लोगों का अपमान-अवमानना नहीं है?
अब पहली घटना पर गौर करते हैं, जो आतंकवाद की जड़ की ओर इशारा करती है – राजीव गांधी की हत्या के दोषियों की फांसी की सजा माफ करने का प्रस्ताव देश की एक विधानसभा में पारित होता है। किसी को यह असाधारण बात नहीं लगती। कहीं कोई चिंता की बात नजर नहीं आती लेकिन जैसे ही जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का ट्वीट आता है कि यदि जम्मू-कश्मीर विधानसभा में ऐसा प्रस्ताव आए तो क्या देश इसी सहजता से उसे लेगा, सब असहज हो उठते हैं। और जब उत्तरी कश्मीर के लंगेट क्षेत्र के विधायक इंजीनियर राशिद विधानसभा में प्रस्ताव रखने का नोटिस देते हैं, तब दिल्ली में पालिटिकल क्लास धरने-प्रदर्शन तक शुरू करा देता है। लेकिन तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता जब कहती हैं कि सदन सभी राजनीतिक दलों और तमिलनाडु के लोगों की भावना ध्यान रखते हुए सर्वसम्मति से राजीव गांधी की हत्या के दोषियों मुरुगन, संथन व पेरारिवलन की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने के आग्रह का प्रस्ताव पारित करे, तब हमारे देश के पालिटिकल क्लास में कोई असहजता नहीं दिखाई देती। जब पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल आतंकवादी देविंदर पाल सिंह भुल्लर की फांसी को माफ करने के लिए राष्ट्रपति को पत्र लिखते हैं कि इससे सिख समुदाय के बीच भारतीय गणराज्य को लेकर अच्छे संकेत जाएंगे, तब धरने-प्रदर्शन करने वाले राजनीतिक दल चुप्पी साध लेते हैं।
ऐसा क्यों है, हम सभी को वस्तुनिष्ठ होकर सोचना चाहिए। एक घटना अगर वोट की राजनीति है तो दूसरी घटना नोट की। दोनों में हम भारत के लोगों को हमारा पालिटिकल क्लास दरकिनार करता नजर आ रहा है। हमारे संविधान में जनता के विशेषाधिकार हनन के नोटिस की व्यवस्था होती तो शायद 120 करोड़ हम भारत के लोगों में से कोई तो पालिटिकल क्लास को नोटिस देकर पूछता कि क्या लोकसभा में आन रिकार्ड यह बयान देना कि हम सब (लोकसभा के लिए चुने प्रतिनिधि) टोपियां उछालने का ही काम करते हैं, विधायका की अवमानना नहीं है? क्या हम भारत के लोग उनसे जान सकते हैं कि वे अपना संविधान निर्धारित काम छोड़ कर टोपियां उछालने का काम क्यों कर रहे हैं? क्या यह काम संविधान की भावना और उद्देश्यों की अवमानना नहीं है? क्या आपका पालिटिकल (रूलिंग) क्लास केवल वोट और नोट गिनने के लिए है या फिर समानता, समरसता और न्याय आधारित उस भारत को उस समाज को बनाने के लिए है जिसका सपना आजादी की लड़ाई के दौरान देखा गया था और जो हमारे संविधान का उद्देश्य है?