रविवार, 4 दिसंबर 2011

जन-गण-मन के देवता, अब तो आंखे खोल

यदृच्छया/प्रभात ख़बर



पिछले रविवार मैंने एक गीत का ज़िक्र किया था। यह गीत था १९५७ में लाहौर में बनी उर्दू फ़िल्म बेदारी का। आओ बच्चों सैर करायें तुमको पाकिस्तान की, जिसकी खातिर हमने दी कुर्बानी लाखों जान की और यूँ दी हमें आजादी कि दुनिया हुई हैरान, ऐ कायद-ए-आजम तेरा अहसान है अहसान गीत भी इसी फ़िल्म के हैं। यह फ़िल्म पाकिस्तान की सर्वकालिक बेहतरीन फ़िल्मों में मानी जाती है। १९५४ में अपने यहां एक फिल्म बनी थी जागृति। इसके गीत याद करिए....आओ बच्चों तुम्हें दिखायें झाँकी हिंदुस्तान की, इस मिट्टी से तिलक करो यह मिट्टी है बलिदान है, हम लाये हैं तूफान से किस्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के और दे दी हमें आजादी बिना खड़ग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल। ये गीत लिखे थे कवि प्रदीप ने। इस फिल्म में केंद्रीय किरदार मास्टर रतन (नजीर रिजवी) का था। पाक फिल्म बेदारी में केंद्रीय किरदार मास्टर रतन का ही था। ये वही मास्टर रतन हैं जिन्होंने बूट पालिश फिल्म में केंद्रीय भूमिका निभाई थी। मास्टर रतन अजमेर के रहने वाले थे और 1956 में इनका परिवार पाकिस्तान चला गया। जाहिर है कि मास्टर रतन भी पाकिस्तान चले गए। वहां जागृति की तर्ज पर रफीक रिजवी (लोग प्यार से उन्हें बापू भी कहते थे) ने फिल्म बनाने का प्रस्ताव रखा जिसे मास्टर रतन ने मान लिया। यह फिल्म जागृति का कार्बन कापी थी। महात्मा गांधी का स्थान ले लिया कायद-ए-आजम जिन्ना ने और हिंदुस्तान की जगह पाकिस्तान कर दिया गया। यही नहीं इसका नाम भी वही रहा (जागृति का उर्दू पर्यायवाची है बेदारी)। उस समय के उभरते हुए पाकिस्तानी गायक सलीम रजा ने कवि प्रदीप के लिखे हुए गीतों को पाकिस्तान के हिसाब से कस्टमाइज कर दिया। सलीम रजा ने इस फिल्म के गीत गाये भी। इनका संगीत बिलकुल जागृति के गीतों वाला ही है। आप यदि लफ्जों पर न ध्यान दें तो लगेगा जैसे जागृति के गीत ही सुन रहे हैं। लेकिन वहां संगीत का क्रेडिट दिया गया उस समय के मशहूर संगीतकार फतेह अली खान को। यह फिल्म 6 दिसंबर 1957 को पाकिस्तान में रिलीज हुई। इस फिल्म को और इसके गीतों को यूट्यूब पर देखा-सुना जा सकता है।

लेकिन इसका जिक्र मैं इसलिए यहां नहीं कर रहा हूं कि यह जागृति की कार्बन कापी है, बल्कि इसलिए कर रहा हूं कि हम यह समझ सकें कि पाकिस्तान आज जहां है, वह मंजिल बरसों पहले ही वहां के जनमानस में भर दी गई थी। दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल की तर्ज पर बने गीत यूं दी हमें आजादी.... की कुछ लाइनें देखिए। इनसे ऐतिहासिक तथ्यों और पाकिस्तान के कुलीन वर्ग के बीच की खाईं का अंदाजा लगाया जा सकता है-

हर सिम्त मुसलमानों पर छाई थी तबाही

मुल्क अपना था और गैरों के हाथों में थी शाही

ऐसे में उठा दीन-ए-मुह्म्मद का सिपाही

और नारा-ए-तकबीर से दी तूने गवाही

इसलाम का झंडा लिये आया सरे मैदान

ऐ कायद-ए-आजम तेरा अहसान है अहसान....

नक्शा बदल के रख दिया इस मुल्क (पाकिस्तान) का तूने

साया था मुहम्मद का, अली का तेरे सिर पे

दुनिया से कहा तूने, कोई हमसे न उलझे

लिक्खा है इस जमीं पे शहीदों ने लहू से

आजाद हैं, आजाद रहेंगे ये मुसलमान

ऐ कायद-ए-आजम तेरा अहसान है अहसान....




रिटेल का खेल

रिटेल में एफडीआई को लेकर खूब हल्ला मच रहा है। 1 दिसंबर को भारत बंद भी रखा गया। विरोध और समर्थन, दोनों तरफ के लोग अफलातूनी बयान दे रहे हैं। मैं दो बातें यहां रखना चाहता हूं जिन पर गौर करने की जरूरत है। पहली बात यह कि किराना दुकानदारों की संख्या अपने देश में एक करोड़ बताई जा रही है। सवाल यह है कि यह संख्या कहां से आयी? इस लिहाज से देखा जाए तो 130 करोड़ की आबादी वाले अपने देश के हर 130 लोगों (इसमें करीब 25 फीसदी बच्चे भी शामिल हैं) पर एक किराने की दुकान है। जरा अपने गांव या मोहल्ले पर नजर डालिए और जांचिए इस आकड़े की सच्चाई को। दूसरी बात, 1 दिसंबर को पंजाब में बंद नहीं रहा जबकि वहां विपक्षी दलों की सरकार है। इस पर भी गौर करना चाहिए कि ऐसा क्यों है और पंजाब वाले बाकी देश से अलग क्यों सोचते हैं? मेरा कहने का मतलब यह कतई नहीं है कि रिटेल में एफडीआई को लेकर घोषित केंद्र की मौजूदा नीति का समर्थन किया जाए लेकिन इतना जरूर है कि विरोध व समर्थन करने वाले लोगों को तर्कसंगत बातें करनी चाहिए। अन्यथा, वही होगा जो नब्बे के दशक में डंकेल ड्राफ्ट के विरोध का हुआ। उस समय ये लोग कह रहे थे कि डंकेल आएगा और हमारी फसल काट ले जाएगा। आडवाणी जी से लेकर लालू जी तक। बाद में जब इनकी सरकारें आईं तो वित्तमंत्री उन्हीं लोगों को बनाया गया जो डंकेल प्रस्तावों को लागू कर सकें। अगर उस समय विरोधी दल गंभीरता से मुद्दा उठाते और कोई समझदारी भरी बहस चलाते तो शायद हम उस बहस से निकले रास्ते पर चल रहे होते। तब भी शायद मकसद सिर्फ सत्तापक्ष के खिलाफ माहौल बनाना था (न कि विचार के स्तर पर कोई रास्ता बनाने का)। आज भी जो हो रहा है, वह उन्हीं डंकेल प्रस्तावों का हिस्सा है। विरोध करने वाले राजनीतिक दल इस बार भी क्या सिर्फ सत्तापक्ष के खिलाफ माहौल बनाने का काम नहीं कर रहे?





और अंत में...

फेसबुक पर एक कविता पढ़ी, मजा आया। आप भी पढ़िए...

जन-गण-मन के देवता

अब तो आंखें खोल

मंहगाई से हो गया जीवन डांवाडोल

जीवन डांवाडोल, ख़बर लो शीघ्र कृपालु

कलाकंद के भाव बिक रहा बैगन-आलू।

1 टिप्पणी:

  1. पाकिस्तान और एफ डी आई के संबंध मे प्रकाश डाल कर आपने काफी ज्ञानार्जन किया है। आपके तर्क विचारणीय हैं।

    जवाब देंहटाएं