यदृच्छया/राजेंद्र तिवारी
प्रभात खबर से साभार
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बीते शुक्रवार शिक्षा दिवस था यानी आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना
अबुल कलाम आजाद की जन्मतिथि। इसी दिन एक अखबार में खबर छपी कि झारखंड में लेक्चरर
पात्रता परीक्षा (जेट) में अंकों में फेरबदल करके 100 ऐसे लोगों को नियुक्ति दे दी
गई जो इसके पात्र ही नहीं थे। बाकी नियुक्तियों में भी घपलेबाजी हुई। यह मामला
सिर्फ झारखंड तक सीमित नहीं है। देश में हर जगह, लगभग हर विश्वविद्यालय और
महाविद्यालय में यही हो रहा है। और इसका नतीजा भी सामने है। ह्यूमन रिसोर्स एंड स्टाफिंग
एजंसी टीमलीज सविर्सेज की रिपोर्ट में कहा गया है कि 90 फीसदी भारतीय युवा रोजगार के लायक
नहीं हैं। इसकी इंडिया लेबर रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 90 फीसदी जाब्स स्किल बेस्ड हैं जो
खेती, मत्स्य पालन, निर्माण आदि क्षेत्रों में निकलते
हैं। ग्रेजुएट होने वाले 90 फीसदी युवाओं की जानकारी सिर्फ किताबी होती है और
इसीलिए उनमें रोजगारयोग्यता नहीं होती। नतीजा यह होता है कि या तो इन
लोगों जाब ही नहीं मिलती और मिलती भी है तो बहुत कम सेलरी पर। भारत में सामान्य ग्रेजुएट की
सालाना औसत सेलरी 75000 रुपए है। यानी सवा
छह हजार रुपए मासिक। रिपोर्ट में कहा गया कि यदि भारत में शिक्षा का यही हाल रहा
तो भले ही जीडीपी के आंकड़े कुलांचे भरते रहें लेकिन भारत विकसित देशों की कतार
में नहीं खड़ा हो पाएगा। मुझे पिछले साल का एक वाकया याद आ रहा है। आप भी सुनिए...
मेरे एक मित्र एक प्रतिष्टित विश्विद्यालय में फिजिक्स पढ़ाते हैं। अगस्त का
महीना था और मैं उनसे मिलने उनके विभाग गया। 11 बजे से बीएससी प्रथम वर्ष के
छात्रों का प्रैक्टिकल क्लास था जो उनके जिम्मे था। उनके साथ एक और लेक्चरर थे।
करीब 40 बच्चे और दो शिक्षक। उन्होंने मुझसे कहा कि क्लास में चलते हैं, वहीं बीच
में चाय पी लेंगे। मुझे भी उत्सुकता हुई कि देखें, 25 साल पहले जब हम बीएसएसी
प्रथम वर्ष में थे, तबके छात्रों और आज के छात्रों में क्या अंतर है। मैं
खुशी-खुशी उनके साथ हो लिया। प्रैक्टिकल क्लास लगभग 20-22 छात्र ही थे। मेरे मित्र
ने उन सबकी अटेंडेंस भरी और साथ-साथ परिचय भी लिया। कोई भी छात्र 80 फीसदी से कम
अंक वाला नहीं था। हमारे समय में यह सीमा 60 फीसदी होती थी। फिर उन्होंने बातचीत
शुरू की और पूछा वर्नियर कैलीपर्स और स्क्रूगेज से रीडिंग लेना किस-किस को आता है।
मुझे लगा कि सबको आता ही होगा क्योंकि मेरे समय में शिक्षक यह मानकर चलते थे कि
प्रथम श्रेणी में 12वीं पास करने वाले छात्रों को यह तो आता ही होगा और अधिकतर को
आता ही होता था। लेकिन यह क्या? एक भी छात्र
या छात्रा ने हाथ नहीं उठाया। मेरे लिए यह चौंकाने वाली बात थी लेकिन मेरे मित्र
ने शांत भाव से अगला सवाल पूछा, किस-किस ने वर्नियर कैलीपर्स देखा है? यह क्या सिर्फ चार ने हाथ उठाया। यह और ज्यादा
चौंकाने वाली बात थी। मैं चुपचाप देख-सुन रहा था और सोच रहा था कि फिर इन बच्चों
ने 80 फीसदी अंकों के साथ 12वीं पास कैसे किया होगा। इसी बीच, जिन लेक्चरर साहब की
ड्यूटी थी, वे उठे और मुझसे कहने लगे कि चलिये स्टोर में बैठते हैं, वहीं चाय
मंगाई है। मेरे मित्र ने कहा कि तुम लोग चलो, मैं इन सबको कुछ असाइनमेंट देकर आता
हूं। वे वर्नियर कैलीपर्स और स्क्रूगेज से रीडिंग लेना सिखा रहे थे। हम स्टोर में
जाकर बैठे। करीब 15 मिनट बाद चाय भी आ गई। लेक्चरर साहब ने लैब असिस्टेंट से कहा
कि जाकर डाक्टर साहब (मेरे मित्र) को बता दो कि चाय ठंडी हो रही है। असिस्टेंट गया
और बता कर आ गया। लेकिन डाक्टर साहब नहीं आए। वे छात्रों के साथ व्यस्त थे। लेक्चरर
साहब थोड़ी देर बाद खीझ कर बोले, हम लोग तो अपनी चाय ठंडी न करें। डाक्टर साहब तो
आज ही सबकुछ पढ़ा देंगे। अरे भाई, जब छात्र पढ़ना नहीं चाहते तो बेकार में उनके
साथ मगजमारी करने से क्या फायदा। डाक्टर साहब बहुत झक्की हैं। आप तो इनके मित्र
हैं, इनको समझाइए कि ये इतनी मेहनत कर देंगे तो भी यहां से कोई न्यूटन या आइंसटीन
नहीं बन जाने वाला। इतना क्या कम है कि हम अपना सिलेबस पूरा कर दें। अब समझना
छात्रों की जिम्मेदारी है, वे चाहें तो समझें और चाहें तो न समझें। चाय खत्म हो
गई। हमने उनसे विदा ली और अपने मित्र डाक्टर साहब से भी। मेरी समझ में आने लगा था
कि क्या अंतर आया है तब में और अब में।
औऱ अंत में...
लोक कवि त्रिलोचन शास्त्री (1917-2007)
हिंदी कविता में सानेट के जनक माने जाते थे। उन्होंने सानेट में जितने प्रयोग किए
उतने शायद स्पेंसर, मिल्टन और वर्ड्सवर्थ जैसे कवियों ने भी नहीं किए थे। उनका एक
सानेट पढ़िए-
सह जाओ आघात प्राण, नीरव सह जाओ
इसी तरह पाषाण अद्रि से गिरा करेंगे
कोमल-कोमल जीव सर्वदा घिरा करेंगे
कुचल जाएंगे और जाएंगे। मत रह जाओ
आश्रय सुख में लीन। उठो। उठ कर कह जाओ
प्राणों के संदेश, नहीं तो फिरा करेंगे
अन्य प्राण उद्विग्न, विपज्जल तिरा करेंगे
एकाकी। असहाय अश्रु में मत बह जाओ।
यह अनंत आकाश तुम्हे यदि कण जानेगा
तो अपना आसन्य तुम्हे कितने दिन देगा
यह वसुधा भी खिन्न दिखेगी, क्षण जानेगा
कोई नि:स्वक प्राण, तेज के कण गिन देगा
गणकों का संदोह, देह व्रण जानेगा
और शून्य प्रासाद बनाएगा चिन देगा
इसी तरह पाषाण अद्रि से गिरा करेंगे
कोमल-कोमल जीव सर्वदा घिरा करेंगे
कुचल जाएंगे और जाएंगे। मत रह जाओ
आश्रय सुख में लीन। उठो। उठ कर कह जाओ
प्राणों के संदेश, नहीं तो फिरा करेंगे
अन्य प्राण उद्विग्न, विपज्जल तिरा करेंगे
एकाकी। असहाय अश्रु में मत बह जाओ।
यह अनंत आकाश तुम्हे यदि कण जानेगा
तो अपना आसन्य तुम्हे कितने दिन देगा
यह वसुधा भी खिन्न दिखेगी, क्षण जानेगा
कोई नि:स्वक प्राण, तेज के कण गिन देगा
गणकों का संदोह, देह व्रण जानेगा
और शून्य प्रासाद बनाएगा चिन देगा
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