गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

कश्मीरियों की जगह खुद को रखकर देखना होगा...

अरुंधति राय इन दिनों कश्मीर पर अपने बयान को लेकर चर्चा में हैं। उन पर जो आरोप लगे हैं, उनका जवाब अपने लेख के जरिए उन्होंने भेजा है। इसमें जो बातें उन्होंने कही हैं, उनमें कुछ भी गलत नहीं है। दरअसल सारा मामला नजरिए का है। यदि हम न्याय, सम्मान, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मूल्यों पर आधारित समाज चाहते हैं तो हमें किस तरह व्यवहार करना होगा, इन्हीं सवालों को अरुंधति ने अपने जवाब में उठाया है।

मैं जम्मू-कश्मीर में साढ़े चार साल रहा हूं। मैं एक किस्सा यहां शेयर करना चाहूंगा...
(यह तस्वीर सांकेतिक है)

शायद 2002 नवंबर की बात है। हम श्रीनगर से कंगन गए हुए थे। रास्ते में एक गांव में हम चाय पीने के लिए रुके। जब हम नीचे से चाय पीकर आए तो सोचा कि यहां गश्त के लिए तैनात सेना के जवानों से बात की जाए। हल्की बर्फबारी हो रही थी। पास में बंद दुकान के आगे के शेड के नीचे दो जवान अपनी एके राइफलों के साथ बैठे थे। मैं और मेरा एक साथी (जो पत्रकार नहीं था) उनके पास गए। बातचीत की। मेरे साथी पश्चिमी उत्तरप्रदेश के थे और वे दोनों जवान हरियाणवी थे। लिहाजा बातचीत परिवार तक जा पहुंची। बातचीत में उन्होंने बताया कि वे अविवाहित हैं। उनमें से एक जवान ने थोड़ी दूर पर दिखाई दे रही करीब 12-13 साल की बच्ची की तरफ इशारा किया कि वो पंसद है तो ले जाओ उसे दुकान पीछे। वह सुंदर सी अबोध बच्ची अपने सिर पर लकड़ी का गठ्ठर लिए अपने छोटे भाई के साथ घर जा रही थी। जब वह करीब आई तो जवान ने उसका हाथ पकड़ कर हमारे साथी से कहा साहब ले जाइए इसे, पसंद कर लीजिए। हमने उससे कहा कि ये क्या कर रहे हो, छोड़ो उसे। वह बोला आप चिंता मत करो, हमसे कोई कुछ नहीं बोल सकता। खैर हमने जवानों को डांटा और कहा कि तुम्हारी ड्यूटी इनकी सुरक्षा है न कि शोषण। बच्ची और उसका भाई कांप रहा था। उन दोनों बच्चों के चेहरे पर डर और किसी अनहोनी की आशंका की लकीरें साफ पढ़ी जा सकती थीं। इस तरह के वाकए कश्मीर में हर जगह बिखरे पड़े हैं। 

हम आप अपने को उन बच्चों की जगह या उनके मां-बाप, भाई-बहन की जगह रखकर देखें...हमारे साथ, हमारी बहन के साथ या हमारे बच्चों के साथ ऐसा सुलूक हो, तो हम किस तरह से देश, दिल्ली, फौज आदि के बारे में सोचेंगे...

ये है अरुंधति का जवाब
Pity The nation
By Arundhati Roy

I write this from Srinagar, Kashmir. This morning’s papers say that I may be arrested on charges of sedition for what I have said at recent public meetings on Kashmir. I said what millions of people here say every day. I said what I, as well as other commentators have written and said for years. Anybody who cares to read the transcripts of my speeches will see that they were fundamentally a call for justice. I spoke about justice for the people of Kashmir who live under one of the most brutal military occupations in the world; for Kashmiri Pandits who live out the tragedy of having been driven out of their homeland; for Dalit soldiers killed in Kashmir whose graves I visited on garbage heaps in their villages in Cuddalore; for the Indian poor who pay the price of this occupation in material ways and who are now learning to live in the terror of what is becoming a police state.
Yesterday I traveled to Shopian, the apple-town in South Kashmir which had remained closed for 47 days last year in protest against the brutal rape and murder of Asiya and Nilofer, the young women whose bodies were found in a shallow stream near their homes and whose murderers have still not been brought to justice. I met Shakeel, who is Nilofer’s husband and Asiya’s brother. We sat in a circle of people crazed with grief and anger who had lost hope that they would ever get ‘insaf’—justice—from India, and now believed that Azadi—freedom— was their only hope. I met young stone pelters who had been shot through their eyes. I traveled with a young man who told me how three of his friends, teenagers in Anantnag district, had been taken into custody and had their finger-nails pulled out as punishment for throwing stones.
In the papers some have accused me of giving ‘hate-speeches’, of wanting India to break up. On the contrary, what I say comes from love and pride. It comes from not wanting people to be killed, raped, imprisoned or have their finger-nails pulled out in order to force them to say they are Indians. It comes from wanting to live in a society that is striving to be a just one. Pity the nation that has to silence its writers for speaking their minds. Pity the nation that needs to jail those who ask for justice, while communal killers, mass murderers, corporate scamsters, looters, rapists, and those who prey on the poorest of the poor, roam free.
Arundhati Roy
October 26 2010

10 टिप्‍पणियां:

  1. हिला देनी वाली घटना है यह.
    मैं यही कह रहा हूँ की हम यहाँ बैठे-बैठे राय जाहिर कर रहे हैं. कश्मीरियों को गाली दे रहे हैं. अरुंधती को गाली दे रहे हैं. अरुंधती ने जो कुछ कहा वहां जाकर देखा, समझा और कहा. इस संवेदनशील विषय पर बिना यथास्थिति जाने कुछ भी कहना ठीक नहीं है. हम सिर्फ कश्मीर का नाम आने पर अपना राष्ट्रप्रेम दिखने लग जाते हैं. बाकी देश में लगे दीमक दिखाई नहीं देते. धन्य है ऐसी राष्ट्रभक्ति.

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  2. मेरे पास भी कई कहानिया है ...सबके पास अपने हिस्से का सच होता है....सब उसे अपनी सहूलियत के मुताबिक इस्तेमाल करते है .....सच कहाँ कैसे ओर किन परिस्थितियों में किस नीयत से बोला गया ये महत्वपूर्ण होता है .....वैसे अरुंधति ने ये बयान किसी साहत्यिक पत्रिका को या किसी लेख मे...ं लिख कर नहीं दिया है एक ऐसे व्यक्ति के साथ साझे मंच पर दिया है जो ऐसी पार्टी का नेतृत्व करता है जो कई हत्याओं में प्रत्यक्ष ओर परोक्ष रूप से भागीदार रही है .... उसकी फंडिंग ऐसे मुल्को से हो रही है जो हेट पालिसी ... भारत विरोधी अख्तियार रखते है .....खैर जाने दीजिये ....
    फिर भी कुछ सवाल है ?
    क्या लेखक मानवीय गुण दोषों से परे होता है .....?
    क्या इस देश में केवल लेखक के जींस के भीतर ही समझदारी के अमीनो एसिड सिक्वेंस में होते है ?
    कश्मीर में मूल में क्या है ?
    क्यों ऐसा है के कश्मीरी ऐसे देश के साथ जाना चाहता है ......जो आर्थिक रूप से बदहाल है ....ग्रह युद्ध की आग में झुलसा हुआ है .....ओर उसके कब्जे वाले कश्मीर के सूरते हाल कुछ अच्छे नहीं है ?
    कोई भी राष्ट्र बेचारा नहीं होता ....उसके नागरिक तय करते है के उन्हें एक बेचारा राष्ट्र बनाना है के ताकतवर ....अधिकारों के साथ कर्तव्य भी आते है
    मुझे कभी भी गिलानी या किसी कश्मीरी नेता के कोई भी बयाँ पढने को नहीं मिले जिसमे उन्होंने कश्मीरी पंडितो ओर सिखों से वापस लौटने या उन्हें बसाने की बात की हो..?

    अलबत्ता हेदराबाद के एक नक्सली नेता राव आई बी एन .पर अरुंधती को समर्थन देते हुए कहते है ... हेदराबाद भी देश का विवादस्पद हिस्सा है ..बहुत अच्छे!!!!!!!
    इसे कहते है डेमोक्रेसी का सदुपयोग !!!!!
    समझदारी के ये " स्टंटमैन" बौद्धिक अय्याशी के शगलो ओर अपनी उपस्थिति दर्ज करने की छटपटाहट में इस देश को जितना नुकसान पहुंचा रहे है वो खतरनाक है ......लोग अब वक़्त हालात ओर व्यक्ति को देखकर अपनी प्रतिक्रिया तय करते है ..... न की उसकी बात पर .... सिद्धांत ओर नैतिकताये फटाफट करवटे लेती है ..... इतिहास के पन्ने बिना पलटे तात्कालिक प्रतिक्रियाओ ओर शाब्दिक जुगालियो का एक नया दौर शुरू हो गया है ........

    कोई भी राष्ट्र बेचारा नहीं होता ....उसके नागरिक तय करते है के उन्हें एक बेचारा राष्ट्र बनाना है के ताकतवर ....अधिकारों के साथ कर्तव्य भी आते है

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  3. kya iska sirf yahi hal hai ...??

    kya bukhar ke liye T.B. ki dawa khilana aklmandi hai ...vaise aapne jo likha hai aisa vaha kuchh bhi nahi hai ..vartman ki jo reports aa rahi hai uname sthaniya police adhiktar doshi hai jabki sena par lage adhiktar ilzam farji nikale ....mere kai sare mitr vaha rahte hai aur mai khud vaha jaa chuka hu aur halat ko kareeb se dekha hai vaha ..!!

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  4. According to Arundhati Roy, Asiya and Nilofer were raped and murdered in Shopian. CBI investigations found they drowned. Asiya was found to be a virgin with the hymen intact. Investigations also revealed that the lady doctor who certified that semen was present in the vaginal swabs actually were her own taken soon after having sex with a man. After violent protests from thugs and goons, govt reordered inquiry and the findings appeased them.

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  5. आदमियों के विकार राष्ट्र को भुगतने ही होते हैं। ऐसे जवान तैनात करने से स्थितियां कैसे सुधरतीं। वॉल्टेयर की उक्ति याद आ रही है कि मैं पहले मनुष्य हूं और बाद में फ्रांसिसी। ये जवान मनुष्य ही नहीं थे तो भारतीय क्या होते।
    इसके बाद वॉल्टेयर को देश से निकाल दिया गया था। उनका पर्शियन लेटर इसकी बड़ी वजह बना। सच को हम राष्ट्र, जाति और धर्म के चस्मे से ही देखते हैं, मानवी आंख से भी देखेंगे तो चीजें ज्यादा समझ आएंगी।
    आपने वॉल्टेयर की इसी नजर से उस घटना को देखा।

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  6. Rajendra sir....
    Me too agree with Dr.Anurag and Sanu sir,every man has his own truth....every coin have two sides...but this is not the time to get cheap publicity(as Arundhti)...this is the time to correct the things.
    Regards..

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  7. sir i was in air force from 1981 to 2001 and during peak insurgency and terrorist activities , we know how we suffered , even to get the dry ration for our base , forget fresh ration like milk , vegetabales , and for those who were eating non veg zero literally zero coperation , highlighting one odd case and maligning armed forces is it fair ??????????

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  8. अरुँधती रॉय के अधिकार की बात अपनी जगह सही है, पर कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है या नहीं इस विवाद पर वे अधिकार के साथ नहीं कह सकतीं। बेशक कश्मीरी लोग हमारे बंधु हैं। इंसानियत के नाते भी और यदि हम उन्हें भारत का हिस्सा मानते हैं तब भी। पर वे अकेले कुछ नहीं हैं। उनके आगे उनके नेता हैं, जिनका इस्लामी एजेंडा है। इसके अनुसार कश्मीर पाकिस्तान का अंग है, क्योंकि यहाँ मुसलमान बहुसंख्यक हैं। कश्मीर से हिन्दू पंडित क्यों भागे? हो सकता है कि अरुंधती कहें कि उन्हें भगाने की साजिश जगमोहन ने की। वे भी कई लाख हैं, और एक झटके में भाग गए। फिर जम्मू भी कश्मीर है और लद्दाख भी। अरुंधती मानती हैं कि भारतीय व्यवस्था सवर्ण हिन्दू व्यवस्था है। वे भारत के धर्मनिरपेक्ष वज़ूद को ज्यादा वजन नहीं देतीं।

    कश्मीर की जनता से हमदर्दी है तो तिब्बतियों से भी हमदर्दी होनी चाहिए, जिनका स्वाभाविक देश तिब्बत है। उसपर उन चीनियों का कब्जा है, जो न तिब्बती भाषा जोनें और न उनके उसूल मानें। उन्हें क्या सिर्फ भारतीय राष्ट्र-राज्य में मानवाधिकारों की चिन्ता है? वे तो सार्वभौमिक मानवाधिकारवादी हैं। उन्हें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की जनता के बारे में भी कुछ कहना चाहिए।

    बहरहाल उनके शब्दों से घबराना नहीं चाहिए। यह उनका लोकतांत्रिक अधिकार है, पर उनकी बातों का जवाब देना भी हमारा लोकतांत्रिक अधिकार है।

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  9. अरुंधति का विरोध उनके बातों को रखने के तरीके से है.बेशक वे विरोध दर्ज करें, कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन अपने देश को गोली देकर और अलगाव की भाषा का इस्तेमाल कर वे एक तरह का करंट पैदा कर रही हैं. इसे कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है. कोई भी चीज तभी तक अच्छी लगती है, जब तक वह सीमा के पार ना हो. रही सुरक्षा बलों के व्यवहार की बात, तो ऐसे किस्से नक्सल क्षेत्रों में भी कई मिल जाएंगे. इससे लेकिन किसी भी प्रकार की देश को अलग-थलग करनेवाली सोच का समर्थन नहीं किया जा सकता है. इसका हल एक ही है कि मामले को राजनीतिक और वैचारिक रजामंदी से हल किया जाए. वैसे भी तब भारत सरकार के तीन प्रतिनिधि शांति समाधान की कोशिश में लगे हैं, तो उसी वक्त अरुंधति का गरजना क्या संकेत है? ये सारी बातें एक रणनीति के तहत हो रही हैं. अरुंधति का इस्तेमाल किया जा रहा है. अलगाववाद को एक ग्लैमरस चेहरा दिया जा रहा है. जिसके पीछे की सच्चाई जानने के बाद हम चैन से नहीं रहेंगे. हमारे देश के खिलाफ कोई गलत भाषा का प्रयोग करे, ये हम कैसे बर्दाश्त कर पाएंगे. ये भारत है, इसलिए अरुंधति की बयानबाजी या चल भी गयी. ऐसा क्या, वे दूसरे देश में कर सकती हैं. हर बात भावना में रह कर नहीं सोची जाती. काल और घटना से अलग भी सोची जाती है. देश को बनाने में हजारों कुर्बानियां भी दी गयी हैं. उन तकलीफों और कुर्बानियों को भी हम न बिसारें.

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  10. ऐसी कहानी तो कोई भी लिख सकता है... कोई प्रमाणिकता हो तो प्रस्तुत करें...

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