बिखरा नहीं
कुछ बंधा नहीं
समय ठहरा था
लेकिन पृथ्वी नहीं
और मैं गुजर रहा था तुम्हारे साथ शाम के बसेरे से
और शायद तुम भी
ठहराव के पल
जिंदगी जितने खूबसूरत
उमस का मौसम
बारिशों सा हसीन
और मैं गुजर रहा था तुम्हारे साथ शाम के बसेरे से
और शायद तुम भी
स्पर्श का रोमांच
ध्वनि जैसा स्पंदित
स्पर्श का रोमांच
आकाश जितना अंतहीन
और मैं गुजर रहा था तुम्हारे साथ शाम के बसेरे से
और शायद तुम भी
कुछ बंधा नहीं
समय ठहरा था
लेकिन पृथ्वी नहीं
और मैं गुजर रहा था तुम्हारे साथ शाम के बसेरे से
और शायद तुम भी
ठहराव के पल
जिंदगी जितने खूबसूरत
उमस का मौसम
बारिशों सा हसीन
और मैं गुजर रहा था तुम्हारे साथ शाम के बसेरे से
और शायद तुम भी
स्पर्श का रोमांच
ध्वनि जैसा स्पंदित
स्पर्श का रोमांच
आकाश जितना अंतहीन
और मैं गुजर रहा था तुम्हारे साथ शाम के बसेरे से
और शायद तुम भी
आप कविता भी लिखते हैं, जानकर खुशी हुई। मैं इस मामले में ज़ीरो हूँ। अब से आपका यह ब्लॉग भी देखेंगे।
जवाब देंहटाएंगुज़रना....इस कविता को कविता बनाता है, अगर ठहर जाना होता तो कहानी हो जाती। सुंदर।
जवाब देंहटाएंस्पर्श का रोमांच
जवाब देंहटाएंध्वनि जैसा स्पंदित
स्पर्श का रोमांच
आकाश जितना अंतहीन
और मैं गुजर रहा था तुम्हारे साथ शाम के बसेरे से
और शायद तुम भी
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...बहुत खूब
jab kisi khas ka sath hota hai to sach me wakt tham gaya sa lagta hai. very beautiful poem. dil ko chhu gaye.
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
जवाब देंहटाएंकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
बहुत अच्छी लीगी कविता| दिल को छू गई | धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंपुनः अद्भुत...
जवाब देंहटाएंअकसर जब तुम मेरे पास नहीं होती हो/
तब अकसर तुम और करीब हो जाया करती हो
एक अरसा गुजर गया/
साथ होने को और पास होने को/
न जाने क्यों ऐसा लगता है जैसे वे दिन फिर लौट आएं...
...जब मैं परेशां होऊं तो तुम्हारे कांधे पर मेरा सिर हो
और ये दुनिया फिर रंगीं हो जाए...
काश ऐसा हो...
बिखरा नहीं
जवाब देंहटाएंकुछ बंधा नहीं
समय ठहरा था
लेकिन पृथ्वी नहीं
फिलहाल अपना भी हाल कुछ ऐसा ही है] आपके शब्दों में 'था' की जगह 'है' लगाने की जरूरत है, बस। दिल को छू लेने वाली पंक्तियां। धन्यवाद